Table Of ContentP- 1
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❝य(cid:733)ा(cid:461)ातम जग(cid:534)व(cid:333) य(cid:304)(cid:733)(cid:580)ेव (cid:366)लीयते।
येनेदं धाय(cid:330)ते चैव त(cid:733)ै (cid:466)ाना(cid:527)ने नमः॥
िजस से सारा जगत उ(cid:523)(cid:580) (cid:352)आ है, िजसम(cid:336) ही
वह लीन होता है और िजस के (cid:554)ारा वह धारण
भी िकया जाता है उस (cid:466)ान (cid:738)(cid:348)प परमा(cid:527)ा
को मेरा नम(cid:715)ार है❞
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जय (cid:373)ी राम िम(cid:361)ो.ं ..
यह पु(cid:721)क म(cid:339)ने किठन प(cid:303)र(cid:373)म एवं अनेको ं (cid:356)ंथो ं के अ(cid:559)यन के
बाद िलखी ं ह(cid:339), इसके लेखन म(cid:336) मुझे लगभग एक वष(cid:330) का समय
लगा और ई(cid:695)र की कृ पा से अब लगभग यह पूरी हो चुकी है
समय की कमी के कारण कु छ एक समु(cid:671)ासो ं का खंडन न
िलख सका पर(cid:566)ु शी(cid:357) अित शीघ्र उनका खंडन भी तैयार हो
जाएगा िजसे कु छ िदनो ं बाद इसी के साथ जोड़ िदया जएगा, पं०
(cid:476)ाला(cid:366)साद िम(cid:373) का म(cid:339) िवशेष आभारी (cid:353)ँ िजनके (cid:554)ारा िलखी ं
पु(cid:721)क का अ(cid:559)यन करक(cid:336) म(cid:339)ने यह स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश का खंडन
तैयार िकया है,
यह पु(cid:721)क चार खंडो ं म(cid:336) िवभ(cid:389) है, िजसका
(cid:366)थम खंड- दयानंद की वा(cid:721)िवकता (इस खंड म(cid:336) दयानंद के
स(cid:636)ूण(cid:330) जीवन च(cid:303)र(cid:361), स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश एवं उनके वेदभा(cid:712)ो ं की
रचनाकाल पर (cid:366)काश डाला गया है, इसके अत(cid:303)र(cid:389) ईसाई
िमसनरी सभा िथयोसोिफकल सोसाइटी के साथ दयानंद के
स(cid:638)(cid:576)ो और उनके काशी शा(cid:723)ाथ(cid:330) के बारे म(cid:336) िव(cid:721)ार से बताया
गया है)
ि(cid:554)तीय खंड- स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश की समी(cid:407)ा (इसम(cid:336) (cid:738)ामी जी (cid:554)ारा
रिचत 'स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश' का क(cid:452)ा िच(cid:487)ा खोलकर उनके कपोल
क(cid:304)(cid:665)त मत की तबीयत से ध(cid:304)(cid:461)यां उडाई है)
तृतीया खंड- दयानंद वेदभा(cid:712) खंडनम् (इसम(cid:336) (cid:738)ामी जी (cid:554)ारा
िकये िम(cid:538) भा(cid:712)ो ं की ध(cid:304)(cid:461)यां उडाते (cid:352)ए यह िस(cid:544) िकया है िक
(cid:738)ामी जी को सं(cid:715)ृ त की तिनक भी समझ न थी इसके
अित(cid:303)र(cid:389) दयानंद (cid:554)ारा िकये अ(cid:694)ील भा(cid:712)ो ं का िनषेध िकया
है)
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चतुथ(cid:330) खंड- ना(cid:304)(cid:721)क आय(cid:330) समाजीयो ं को जबाव (इस खंड म(cid:336)
इंटरनेट जगत से ली गई साम(cid:356)ी (cid:554)ारा, ना(cid:304)(cid:721)क आय(cid:330) समाज
(cid:554)ारा लगाये गये आरोपो ं का खंडन कर उ(cid:590)(cid:336) उ(cid:517)र िदया गया है)
पाठको ं से िवशेष िनवेदन है िक यिद इस पु(cid:721)क म(cid:336) कोई भूल
रह गई हो तो वह मुझे www.facebook.com/polparkash
और www.hindumantavya.blogspot.in पर कमे(cid:564) या
मैसेज (संदेश) के (cid:554)ारा अपनी िशकायत वा सुझाव दे सकते ह(cid:339),
यिद आव(cid:692)कता (cid:352)ई तो इसम(cid:336) शोधकर इस पु(cid:721)क को दुबारा
तैयार कर िदया जायेगा
ध(cid:586)वाद
~उपे(cid:574) कु मार 'बागी'
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िजन िजन (cid:356)ंथो ं का इसम(cid:336) वण(cid:330)न है।
वेद
ऋक् यजु, साम, अथव(cid:330)
(cid:368)ा(cid:742)ण
ऐतरेय, शतपथ, ता(cid:503)य, गोपथ
उपिनषद
ईश, के न, कठ, (cid:366)(cid:690), मु(cid:503), मा(cid:503)ू (cid:400), तैि(cid:517)रीय,
बृहदार(cid:507)क, छा(cid:573)ो(cid:438)
धम(cid:330)शा(cid:723)
या(cid:466)व(cid:652), मनु(cid:733)ृित
दश(cid:330)न
महाभारत, रामायण, इितहास, पुराण
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िवषयान(cid:248)ु मिणका
भूिमका ..…009
(cid:366)थम खंड- दयानंद की वा(cid:721)िवकता
१• दयानंद आ(cid:527)च(cid:303)रत (एक अधूरा सच) …..017
२• दयानंद, स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश एवं उनके वेदभा(cid:712)ो ं िक
वा(cid:721)िवकता …..056
३• ईसाई िमशनरी सभा िथयोसोिफकल सोसायटी से
दयानंद के स(cid:638)(cid:576) …..066
४• काशी शा(cid:723)ाथ(cid:330) …..078
ि(cid:554)तीय खंड- स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश की समी(cid:407)ा
५• स(cid:529)ाथ(cid:330) (cid:366)काश अ(cid:566)ग(cid:330)त भूिमका की समी(cid:407)ा …..085
६• (cid:366)थम मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..091
७• ि(cid:554)तीय मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..111
८• तृतीया मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..130
९• चतुथ(cid:330) मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..187
१०• पंचम मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..267
११• ष(cid:703) मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..278
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१२• स(cid:593)म मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..289
१३• अ(cid:700)म मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..344
१४• नवम् मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..368
१५• दशम् मु(cid:671)ास की समी(cid:407)ा …..370
तृतीया खंड- दयानंद कृ त वेदभा(cid:712)ो ं िक समी(cid:407)ा
१६• दयानंद का कामशा(cid:723) …..380
१७• न(cid:736)भेदी दयानंद …..400
१८• (cid:738)ामी दयानंद एकादश िनयोग की देन …..408
१९• महिष(cid:330) या िफर महाचुितया …..428
२०• पशुिहंसक दयानंद (िजहादी दयानंद) …..434
चतुथ(cid:330) खंड- ना(cid:304)(cid:721)क एवं िनयोग समाजीयो ं (आय(cid:330)
समाजीयो)ं को जवाब
२१• आय(cid:330) अथा(cid:330)त (cid:373)े(cid:703) आय(cid:330) संबोधन का श(cid:616) …..440
२२• सुधारक, िन(cid:573)क या सहायक …..453
२३• (cid:400)ा (cid:354)ांितकारी आय(cid:330) समाज से थे? …..463
२४• (cid:400)ा चाण(cid:400) मूित(cid:330)पूजा िवरोधी थे? …..467
२५• दयानंद का अद् भुत िव(cid:466)ान …..472
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ॐ इ(cid:529)ेतद(cid:407)रिमदं सव(cid:333) त(cid:735)ोप(cid:681)ा(cid:421)ानं भूतं भव(cid:549)िव(cid:712)िदित
सव(cid:330)मोकं ार एव।
य(cid:452)ा(cid:586)(cid:304)(cid:797)(cid:853)कालातीतं तद(cid:599)ोकं ार एव॥
भूिमका
पूव(cid:330) काल मे भारतवष(cid:330) िव(cid:552)ा बु(cid:304)(cid:544) और सव(cid:330)गुणो ं की खान
था, िजस समय इस भारत वष(cid:330) की कीित(cid:330)पताका भूमंडल
के चारो तरफ फहरा रही थी, उस समय कनो से सुनी
कीित(cid:330)यो और ने(cid:361)ो से देखने िनिमत दू र देशो से लोग यहाँ
आते थे, और अपने ने(cid:361)ो को सुफलकर यहाँ की अतुलनीय
कीित(cid:330) को अपनी भाषा के (cid:356)ंथो मे रचते थे, वे (cid:356)ंथ आज भी
इस देश की गु(cid:348)ता और कीित(cid:330) का (cid:733)रण कराते है, िजस
समय यह िव(cid:695) अ(cid:466)ाना(cid:576)कार मे म(cid:432) था पृ(cid:539)ी के
अिधकांश भाग अस(cid:631)ता पूण(cid:330) ही रही थी उस समय यही
देश धम(cid:330) आ(cid:304)(cid:721)कता और भ(cid:304)(cid:389) और स(cid:631)ता के पूण(cid:330)
(cid:366)काश से जगमगा रहा था, उस समय इस देश मे ही (cid:466)ान
िव(cid:466)ान गिणत दश(cid:330)न (cid:475)ोितष का(cid:681) पुराण सािह(cid:529) धमा(cid:330)िद
िवषयो मे पूण(cid:330) उ(cid:580)ित की थी,
क(cid:692)प मरीिच िव(cid:695)ािम(cid:361) आिद जहा के ऋिष, (cid:681)ास
बा(cid:669)ीिक कािलदास जहा के किव, ध(cid:587)(cid:566)(cid:303)र सु(cid:373)ुत चरक
आिद जहा, के वै(cid:552), गौतम कणाद किपल जहा के
शा(cid:723)कार, नारद मनु बृह(cid:729)ित जहा के धम(cid:330)पदे(cid:703)ा, विश(cid:703)
आय(cid:330)भ(cid:485) पराशर आिद जहा के (cid:475)ोितिव(cid:330)द, शंकराचाय(cid:330),
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रामानुज (cid:738)ामी, व(cid:671)भाचाय(cid:330) जहा के धम(cid:330)(cid:366)चारक,
सायणाचाय(cid:330), य(cid:466)देव म(cid:304)(cid:671)नाथ जहा के भा(cid:712)कार,
अमरिसंह, महे(cid:695)र जहा के कोषकार हो गए है, ऐसा एक
ही देश है और वो भारत ही है।
िजस समय मे यह सब साम(cid:356)ी िव(cid:552)मान थी, उस समय इस
देश मे सनातन वैिदक धम(cid:330) पूण(cid:330)(cid:349)प से (cid:366)चिलत था, नरपित
ऋिषमुिनयो के य(cid:466) से पु(cid:507) (cid:407)े(cid:361), प(cid:695)य(cid:466) से (cid:356)(cid:304)(cid:830)थयो के
घर, और अर(cid:507)क पाठ से कानो मे पु(cid:507) का (cid:366)वाह बह
रहा था, सनातन धम(cid:330) की मिहमा और भ(cid:304)(cid:389) सबके
अंतःकरण मे (cid:304)खल रही थी।
परंतु समय की भी (cid:400)ा अलौिकक मिहमा है, की
सूय(cid:330)मंडल को आकाश मे चढ़कर म(cid:559)ा(cid:590) समय महाती(cid:765)ण
होकर िफर से नीचे उतरना पड़ता है ठीक वही दशा इस
देश की (cid:352)ई, जो सबका िशर मौर था वो पराधीनता के भार
से महापीिङत हो रहा है, भारत के उपरांत यह देश
िवदेशी चढ़ाइयो ं से गारत होकर ऐसा आहत (cid:352)आ है, की
िन(cid:739)ार बलहीन होकर आल(cid:735) का भंडार हो गया है,
इसकी िव(cid:552)ा बु(cid:304)(cid:544) सब िवदेशी िश(cid:407)ा मे लय हो गयी है,
धम(cid:330) कम(cid:330) मे असावधानी हो गयी है, सं(cid:715)ृ त िव(cid:552)ा जो
ि(cid:554)जमा(cid:361) का आधार थी, उसके श(cid:616) भी अब शु(cid:544) नही
उ(cid:452)ारण होते, इस (cid:366)कार धम(cid:330) िवलु(cid:593) होने से अनेक
मतभेद भी हो गए है, िजस पु(cid:348)ष को कु छ भी सहायता
िमली झट उसने अपना नवीन पंथ की कलपना कर श(cid:616)
(cid:368)(cid:742) की क(cid:665)ना कर ली, और िश(cid:712)ो को उपदेश देना
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